19 जनवरी, 1990 - कश्मीर

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दरख्तों से परिंदे उड़ने लगे हैं, महफ़ूज जगहों पर इकट्ठे होने लगे हैं। सफ़ेद चादर से ढक चुकी घाटी, अपनी ही बाँहों में सिमटने, कसमसाने लगी है। पेड़ो से हरा रंग उतरने लगा है, शाखें सूनी, खामोश खड़ी हैं। मैं ...
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